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Monday, March 21, 2011

लौहपथगामिनी में मस्त मैथुन – 1: शौचालय में सम्भोग

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ऑफिस की लड़कियों की चुदाई – 2: तेरी सहेली के साथ में, दिया तेरी गांड में

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ऑफिस की लड़कियों की चुदाई

अब भाई लोगों, जैसा मैंने आपसे पहले बोला था, मेरी सोच वक़्त में थोड़ी आगे पीछे जाती रहेगी. आप लोग सोच रहे होंगे, ऐसा क्या चौदु आदमी है जो इतनी लडकियां छोड़ बैठा है, तो मैं सिर्फ ये कहूँगा के अगर सिर्फ लडकियां चोदने की बात रहती तो ठीक है लेकिन ज़िंदगी में और भी काफी चीज़ें हैं, जो आपके पास हैं लेकिन मेरे पास नहीं. मेरी ज़िन्दगी सिर्फ चोद का प्रकरण बन कर रह गयी है. लेकिन उम्मीद है के इससे आपका मनोरंजन हो रहा होगा. कई बार कहानियां लिखते लिखते खड़ा हो जाता है तो या तो मुठियाना पड़ता है या किसी पुरानी महबूबा या रंडी के ठिकाने पे पहुँच जाता हूँ. खैर, सफाइयां बाद में, पहले आपको अपनी अगली कहानी सुनाता हूँ.

ये कहानी उन दिनों की है जब मैं ऑफिस में नया नया मेनेजर बना था. छोटी कंपनी थी, तो काफी ज़िम्मेदारी थी. अपने डिपार्टमेंट में लोगों को मैं ही भर्ती करता था. मुझे जानते हो समझ ही गए होंगे के मैंने माल लडकियां ठूंस ठूंस के भर राखी होंगी. खैर, केवल दौ लडकियां थी. लेकिन माल थी दोनों- एक मेरी सेक्रेटरी – दिल्ली की एकदम तेज़ और कॉलेज से ताजा निकली हुई लडकी और दूसरी चंडीगढ़ से- मेरे डिपार्टमेंट में इंटरप्रेटर का काम करती थी – यानी के जापानी से इंग्लिश और इंग्लिश से जापानी में ट्रांसलेट करती थी. दिल्ली वाली का नाम दिया शर्मा और चंडीगढ़ वाली का नाम अखिला बत्रा. दोनों बहुत ही सुन्दर, गौरी चिट्टी. दिया थोड़े पतले फ्रेम की- साढ़े पांच फूट लम्बी, एकदम मस्त फिगर – गौल गौल गांड, तीखे फीचर, एकदम पतली कमर, लेकिन मम्मे छोटे छोटे. ऊपर से शक्ल ऐसी के एकदम ताजा और नाजाकत से भरी. जब भी वो अपनी टाईट जीन पहन के आती थी, मैं उसको बार बार ऑफिस में बुलाता रहता था और जब वो उठ के जाती थी तो उसकी मचलती गांड को घूरता रहता था. अब ऐसी बातें छिपती नहीं हैं. उसने भी जाते जाते ऑफिस के दरवाजे में मुड़ के खड़े होके बातें करनी शुरू कर दी. अब हर बार यही होता – मैं उसे ऑफिस में बुलाता, थोड़ी देर बात होती, फिर जाते जाते वो दरवाजे में खड़ी हो जाती, मेरी और गांड करके और टाँगे क्रॉस कर लेती ताकि गांड पे और ज्यादा ध्यान जाए. बार बार मेरी नज़रें उसके मुस्कुराते चेहरे से फिसल फिसल के उसकी गांड पे आ गिरती. उसके जाने के बाद मैं देर तक लंड सहलाता रहता.

अखिला भी कोई कम माल नहीं थी, दिया से कोई ३-४ इंच लम्बी और भरे भरे मम्मे, मस्त गौल गुन्दाज गांड और बीच में लम्बी, पतली कमर, भरे भरे होंठ ऐसे के बस बैठ के या तो चूसते रहो या लंड मुंह में देके चुसाते रहो. जापानी कंपनी के साथ काम करके थोड़ी थोड़ी जापानी मुझे भी आती थी लेकिन मैं जब भी मौका मिलता था, बहाने से अखिला को बुला के कोई कांट्रेक्ट या ड्राइंग खोल के ट्रांसलेट करने बुला लेता था. वो अपनी कुर्सी एकदम मेरे साथ लगा के मेरे साथ बैठ जाती थी और मैं लंड खड़ा होने के कारण १० मिनट तक उठने लायक नहीं रहता था. उसका मुंह मेरे मुंह के इतने नजदीक होता था के बस ज़रा सा झुकूं तो किस्स हो जाए, लेकिन ऑफिस है सो सावधान रहना पड़ता था. ऊपर से उसकी मंगनी अभी हुई थी तो सोचा के ज्यादा चांस नहीं है. खैर मेरे जैसे तजुर्बेकार को पता होना चाहिए के ये सब चुदाई के रास्ते में नहीं आता. मेरे ऑफिस में और भी लोग थे, लेकिन मैं ही अकेला मेनेजर था और मेरे ही पास ओपेल एस्ट्रा कार थी, सो टौर मेरे ही थे. मैं लगातार दोनों को लाइन डालता रहता के कोई तो फंसे नहीं तो ऐसे ही देख देख के मजे लेते रहने में भी कोई हर्ज नहीं था मुझे. थी दोनों सहेलियां लेकिन मैं अनजाने में उनके बीच आ गया जिसका नतीजा आप थोड़ी देर में जान ही जायेंगे – कुछ अच्छा कुछ बुरा. शुरू ये कुछ इस तरह हुआ के मैं अखिला के साथ बैठा कुछ पेपर ट्रांसलेट कर रहा था के दिया आ गयी. जाते जाते उसने थोडा फ्लर्ट मारा-”बॉस कभी घुमाओ वुमाओ यार” तो मैंने कहा – “कोई नहीं शाम को क्लब चलते हैं.” दिया ने दरवाजे में अपने उसी अंदाज में खड़े होके मेरी और मुस्कान दी, अंगडाई सी दी और मेरी नज़र उसकी गांड पे जा पहुँची, बोली – “हाँ हाँ, जैसे ले जाओगे”. “अब की बार सच्ची ले जाऊंगा, मैं बुला.” मेरे कंधे पे हल्का सा एक नर्म और गर्म स्पर्श हुआ और अखिला बोली – “मुझे भी ले चलोगे?” था तो हल्का सा मजाक, लेकिन मेरी और झुकते हुए अखिला का मम्मा मेरे कंधे से रगड़ा गया था. मैं थोडा चौंक गया, अखिला संभली लेकिन दिया को नज़र आ गया. बोली – “हाँ, बॉस, दोनों को ले चलो”, फिर जाते जाते उसने आँख मारी और निकल गयी.
मुझे उसके बाद ज्यादा समझ में आया नहीं क्या करूं, श्याम को घर जाके मुठ्ठी मारी दोनों के नाम की तब जी को चैन पड़ा. फिर मैंने एक प्लान बनाया और उस प्लान के तहत काम करना शुरू कर दिया. अब तक मुझे एकदम साफ़ नज़र आ गया था के दोनों लडकियां चुदने पे आमादा हैं, लेकिन ऑफिस से बाहर मिलें तो कैसे. और वैसे भी पहले धीरे धीरे शुरुआत करने से गलतफहमी होने की सम्भावना कम रहेगी. अब मैं पूरा पलान बना के अगले दिन एकदम तैयार ऑफिस पहुँच गया. अखिला को अपने कमरे में बुला के पहले इधर उधर की बातें की, साथ में हिंट देता रहा पूछा के क्या किया कल रात, शनिवार को क्या कर रही है, वगैरा. एक बार भी उसने अपने मंगेतर का नाम लेके मूड खराब नहीं किया. फिर मैंने अपनी ड्राइंग्स खोली, और उसे अपने पास बैठाया. इस बार मैंने अपने कुर्सी उसकी कुर्सी के नजदीक खिसका ली. ड्राविंग बीच में रख के मैं थोडा और झुक कर अखिला के चेहरे के नजदीक अपना चेहरा ले आया. वो भी थोड़ी और नजदीक आ गयी. मैंने अपनी कोहनी उसकी और झुका दी तो उसने भी सट से अपना चूचा मेरे बाजू से लगा दिया. मैं थोड़ी देर ऐसे ही काम की नौटंकी करते हुए अपने बाजू से उसका मम्मा सहलाता रहा. उसका मम्मा पकड़ने की हिम्मत न हुई के कहीं कोई आ ना जाए. इतना सोचते ही दरवाजे पे किसी ने दस्तक दी, दिया थी. अन्दर आ के उसे माजरा समझ में आ गया.
मेरे बाजू से अखिला का मम्मा रगड़ते देख के वो थोड़ी झिझकी, लेकिन मैंने उसे अन्दर बुला लिया. “यार, मेरे बॉम्बे वाला इंस्पेशन कब है?”, मैंने पूछा तो बोली – “अगले हफ्ते, जाओगे क्या?”. मैंने बहाना बनाया – “हाँ, देख के लग रहा है जाना पड़ेगा, शायद अखिला को भी जाना पड़े, ट्रांसलेट करने के लिए.” अखिला के मम्मों का हिलना मुझे अपने बाजूवों पर महसूस हुआ. “चलोगी, अखिला?” मैंने पूछा. वो बोल पाती या बहाना बना पाती, उससे पहले मैंने कहा – “मेरी गर्लफ्रेंड भी आजकल बॉम्बे में है, तुम मिल भी लेना.” “ओह कूल, ज़रूर, बॉस.”, अखिला बोली. “आपकी गर्ल फ्रेंड?”, दिया ने पूछा और अपने दोनों हाथ मेरे टेबल पे रख के मेरी और झुक गयी. उसकी बाहों के बीच में दब के मम्मे बीच में इकठ्ठे हो गए थे. वो थोड़ी और नीचे झुकी और मैं उसके शर्ट के ऊपर से झाँक पाया उसके मम्मे – एकदम दूधिया, चिकने और चमकदार, और इतने छोटे भी नहीं थे जितने मैं समझ रहा था. मैंने कहा – “हाँ, शिल्पा नाम है. तुमसे भी मिलवाऊंगा कभी.” खैर, ज्यादा कुछ नहीं उस दिन, बस अगले हफ्ते तक रोज़ अखिला के मम्मे अपने कन्धों से रगड़ते रहा.

बॉम्बे का सिर्फ दौ दिन का टूर था, मतलब सिर्फ एक रात. अब मेरे पास मौका बहुत कम था- एक रात में अखिला की चुदाई कर पाऊँ तो कर पाऊँ, वापिस आ के दिया की नज़रों से छिप के चोदना मुश्किल है. आप सोच रहे होंगे मेरी बॉम्बे में गर्लफ्रेंड के बारे में – वास्तव में वो मेरी गर्ल फ्रेंड नहीं एक कॉल गर्ल है, जो मॉडल भी है. ये उन दिनों बॉम्बे में बहुत चल रहा था के काफी सारी मोड़ेल्स साथ साथ कॉल गर्ल का काम भी करती थी. नयी मॉडल के रेट- १०००० रुपये दौ घंटे के और २५००० पूरी रात के. टॉप मॉडल के २५००० दौ घंटे के और ५०००० से ले के एक लाख तक पूरी रात के. मेरी पहचान वाली मॉडल थी बीच की, लेकिन मैं उसका रेगुलर ग्राहक था तो कई बार पार्टीयों में भी साथ चले जाते थे. मैंने उसको फ़ोन करके बोला के एक रात हैं वहाँ, किसी तमीज वाली पार्टी में इन्वईट करो और एक लडकी साथ में है, जो इस टाइप पार्टी में कभी आयी नहीं है, उसकी चुदाई में मदद करवाए. शिल्पा सब समझ गयी और इस प्रकार अखिला की चुदाई की पूरी तैय्यारी हो गयी.

तो दोस्तों, हम बॉम्बे अखिला के साथ पहुँच गए. दिन में क्या हुआ, उसमें तो आपका इंटरेस्ट होगा नहीं, सो रात की बात करते हैं. अखिला मेरे और शिल्पा के साथ पार्टी में जाने को तैयार हो गयी. पार्टी थी एक फाइव स्टार होटल में प्राइवेट पार्टी, जिसमें मॉडल, बी-ग्रेड एक्टर और दल्ले टाइप लोग आते हैं. बाहर वाले को लगेगा के काफी हाई-फाई पार्टी हाई, लेकिन ये ज्यादातर लोग जान पहचान के लिए आये हुए थे. लडकियां इसलिए के कहीं कोई प्रोडूसर देख ले, रात में चुदाई हो जाए और शायद किसी मूवी में ब्रेक मिल जाए, लड़के भी शायद इसी उम्मीद से आते हों. हमने उसी होटल में रात के दौ कमरे बुक कर लिए.

डिन्नर के बाद हम पार्टी पहुंचे और थोड़े ड्रिंक्स के बाद, जैसे म्यूजिक डांस टाइप होने लगा, जनता नाचने लगी. मैं और शिल्पा भी चिपक चिपक के डांस करने लगे. अखिला देख रही थी तो मैंने शिल्पा की गांड ज़रा सा दबा के अखिला की और देख के मुस्करा दिया. अगले गाने पे हम साइड में आ गए, एक और ड्रिंक के लिए. शिल्पा ने अखिला से पूछा – डांस करोगी. अखिला बोली- “पार्टनर नहीं है.” शिल्पा बोली- “चिंता न करो, आओ”. मैं साइड में अपना ड्रिंक पीता रहा और शिल्पा और अखिला एक दुसरे के सामने खड़े हो के थिरकने लगे. शिल्पा ने अखिला से कहा – “मालूम है, लड़कों को क्या पसंद आता है सबसे ज्यादा?” अखिला ने पूछा – “नहीं, बताओ”. शिल्पा ने कहा – “लडकियां एक दुसरे से चिपकते हुए.”
“सच्ची? लेस्बियन?”
“अरे यार, लेस्बियन नहीं, खाली चिपकती लडकियां, हिजड़ों का भी खड़ा हो जाए ये देख के”
अखिला थोड़ी चौंक गयी, लेकिन उसने सोचा होगा के हाई सोसायटी के लोग हैं, ऐसे ही बात करते होंगे.
शिल्पा ने अपना जाल फेंकना जारी रखा – “अभी तुम्हारे लिए डांस पार्टनर लाते हैं.” कहके उसने अपने एक हाथ से अखिला का हाथ पकड़ के बालरूम स्टाइल में अखिला को पकड़ लिया. जैसे ही दोनों के मम्मे आपस में टकराए, मेरा लौड़ा टनं खड़ा हो गया. थोड़ी देर दोनों ऐसे ही झूमती रही, फिर शिल्पा एकदम अखिला से चिपक गयी. अखिला की भी झिझक खुल गयी थी और वो मूड में आ गयी थी. दोनों एक दुसरे से चिपकी हुई थी और लोगों ने दोनों को घूरना शुरू कर दिया था. शिल्पा ने अपना हाथ अखिला की कमर के हिस्से में, जहां टॉप ख़त्म हो गया था और स्किर्ट शुरू नहीं हुआ था, यानी के नंगे हिस्से पे अपना हाथ फिराना शुरू कर दिया. मैंने सोचा मौका अच्छा है, अब बीच में घुस जाता हूँ, लेकिन इससे पहले के मैं पहुँच पाता, कोई और आ पहुंचा. वो ६ फुटा मोटा, काला शिल्पा का दल्ला. मैं थोडा हैरान हुआ के ये यहाँ क्या कर रहा है, लेकिन थोडा पीछे हट गया. मैं दल्लों से कभी पंगे नहीं लेता.
दल्ले महाराज पीछे से नाचने की एक्टिंग करते हुए अखिला के पीछे तक जा पहुंचे. फिर झूमती हुई अखिला के कंधे पे हाथ रखा,और पीठ पर सरकाते हुए उसकी कमर में हाथ दाल दिया. अखिला थोडा दारु में, थोडा माहौल में और थोडा शिल्पा के जाल में मस्त हुई जा रही थी और उसने बिलकुल भी ध्यान न दिया. मैंने सोचा- चुद गयी आज तो ये, लेकिन मेरे से नहीं, इस मादरचोद दल्ले से. मैं सोचने लगा के क्या किया जाए.
इधर दल्ला अखिला की कमर में हाथ ड़ाल के पीछे से नाच रहा था, उधर शिल्पा सामने से. थोड़ी देर बाद शिल्पा पीछे हट गयी और एक और काला मोटा बंदा उस की जगह आ गया. अब अखिला बीच में मजे से झूम रही थी और एक हट्टा कट्टा मादरचोद उसके पीछे और एक सामने. धीरे धीरे करके दोनों उसके नजदीक आने लगे, इतने नजदीक के दोनों ने अपने अपने लौड़े से गांड पे पीछे से और उस के पेट पे आगे से रगडा रगडी करने लगे. सामने वाले ने एक हाथ से अखिला का हाथ पकड़ा और दुसरे से सामेंसे उसके कंधे पे हाथ यूँ रख लिया के पूरा बाजू अखिला के मम्मों से लगा रहे. पीछे वाले ने अपना हाथ कमर से नीचे सरका के अखिला के कूल्हे थाम लिए. दल्ला अब उसके कोमल कोमल कूल्हों को दबाने लगा और सामने वाले ने अपना हाथ नीचे करके उसके मम्मे दबोच लिए. देखने में मजा भी आ रहा था और सोच भी रहा था के कैसे बचाऊँ इसे. सारे ही लोग ऐसे चिपके हुए थे के किसी का ध्यान इनकी और जा नहीं रहा था, या फिर लोग जान बूझकर इन्हें अनदेखा कर रहे थे. मैंने सोचा साले अंडर वर्ल्ड के लोग न हों, कहाँ फंसा दिया बेचारी को. अब दोनों ने एकदम अखिला का सैंडविच बना लिया था और जोर जोर से रगड़े लगाने लगे. सामने वाले मौटे ने कई हफ़्तों की दाढी बना रखी थी, उसने अपनी दाढी अखिला के गालों पे रगडनी शुरू कर दी. अब अखिला थोड़ी बेचैन नज़र आने लगी. मैं आगे बढ़ा लेकिन शिल्पा ने रोक लिया. “ये क्या मजाक है?”, मैंने पूछा. “अरे, कोई नहीं, पूरा काम कर रही हूँ मियाँ, ये लडकी एकदम नयी है, अगर तुम इसकी लेने की कोशिश करते तो हरगिज़ कुछ न हो पाता और तुम्हारी नौकरी अलग मुश्किल में पद जाती, मेरे बन्दे इसको सेट कर देंगे फिर अपने बाप से भी चुदवा लेगी, बस मेरे साथ थोड़ी देर नाचते रहो और उसकी और देख के मुस्कुराते रगों. हम लोगों को आस पास देख के वो डरेगी नहीं.” कोई और चारा ना देख के मैं मान गया. अब सामने वाला भुसंड कहीं चला गया और पीछे वाला भुसंड अपना लंड मेरी अखिला की गांड पे लगा के उसकी कमर पकड़ के घिस्से लगाता रहा. फिर उस भुसंड ने पीछे से अखिला की कमर के चारों और अपनी बाहे लपेट दी, और घिस्से लगाना ज़ारी. अखिला ने हमारी और देखा, हम मुस्कराए, वो मुस्कराई और फिर मस्त हो गयी. दूसरे काले भुसंड का फिर आगमन हुआ, एक ड्रिंक ले के आया था अखिला के लिए. उसके बाद फिर अखिला को बीच में दबोच के दोनों बारी बारी मजे लेते रहे. फिर पीछे वाले दल्ले ने अपने घुटने मोड़ के अपने लंड को अखिला की गांड से सटाया, अपने हाथों को उसके इर्द गिर्द लपेटा और उठा लिया. तीनों हंसने लगे और सामने वाले चौदु ने अखिला के सैंडल पहने हुए पाँव उठाये और दोनों मादरचोद अखिला को यूँ ऊपर नीचे करने लगे जैसे पीछे वाला उसकी गांड मार रहा हो. देख के मेरा लौड़ा तन गया और शिल्पा के पेट पे जा चुभा. शिल्पा ने कहा- देखा, हो गए न तुम भी तैयार. मैंने शिल्पा की गांड पकड़ी और दबाने लगा, फिर मैंने आँख बंद करके दौ मिनट चुम्बन लिया होगा और आँख खुलते ही अखिला गायब, साथ में दोनों चौदु. मेरी गांड फट गयी, मैंने शिल्पा से पूछा, वो बोली- “ऊपर चलो, शिल्पा के रूम में. मुझे पता था तुम्हारे बस का नहीं है, इसलिए अपने दोस्तों को साथ लाई थी”

अब मेरे दिमाग की बत्ती जली, लेकिन मैं जब तक खुद देख न लेता, मानने वाला नहीं था. पुलिस की सोचता रहा, लेकिन सोचा के क्या बताऊंगा, कैसे लाया था शिल्पा को यहाँ. सो, कोई और चारा था नहीं. शिल्पा के साथ जल्दी जल्दी ऊपर जाके अखिला के कमरे में पहुंचे. दरवाजा खुला था और वाकई में दोनों चौदू अखिला के साथ उस कमरे में थे. मेरी सांस में सांस आयी. कमरे में हल्का हल्का सा म्यूजिक चल रहा था. दोनों दल्ले अखिला के घिस्से लगा रहे थे. दल्लों ने अपनी कमीजें उतार रखी थी, लेकिन अखिला ने अभी भी पूरे कपडे पहन रखे थे. अखिला अब एकदम मस्त हुई जा रही थी. मुझे देख के बोली, आ जाओ, मियाँ, आप ही की कमी थी. अब मैं और शिल्पा एक कौने में चिपट के चुम्मा छाती करने लगे और वो दोनों अखिला के शरीर के साथ खिलवाड़ करने लगे. थोडा ध्यान दिया तो देखा अखिला के सैंडल नहीं थे, अब वो नंगे पैर थी. फिर थोड़ी देर में, तीनों बिस्तर पे थे. दल्ला अभी भी पीछे से लौड़ा घिसा रहा था और कपड़ों के ऊपर से ही अखिला के मम्मे दबा रहा था जबकी सामने वाला पहलवान अपनी दाढी को अखिला के पेट से रगड़ रहा था. उसके पेट पे हलकी हलकी लाली नज़र आ रही थी.

अब सामने वाले पहलवान ने अखिला की टांगों पे हाथ फिराना शुरू कर दिया और अपना हाथ अखिला की स्किर्ट में ड़ाल दिया. स्कर्ट ऊपर उठती गयी, अखिला हंसती भी रही और सिस्कारियां भी भर्ती रही. शिल्पा ने मेरे हाथ में एक गोली पकड़ा दी- ये लो, वयाग्रा, घंटों लंड खड़ा रहेगा, ज़रुरत पड़ेगी, बोल के हंसी. मैंने सोचा, कहीं नींद की गोली न हो, फिर सोचा के अगर इन लोगों ने अखिला की लेनी होती तो अकेले अकेले भी ले लेते, मुझे ऊपर बुलाने की ज़रुरत नहीं थी. सोच के मैंने गोली चबा ली. लौड़ा वैसे ही फुन्कारें मार रहा था, इसलिए असर पता नहीं चला. इधर पहलवान ने अखिला की स्किर्ट उतार के उसकी पंटी उतार डाली. फिर पहलवान ने अखिला की चूत में उंगली डाली ही थी के अखिला ने बहुत जोर से आह भरी. मैंने अपनी पेंट खोली, चड्ढी उतारी और शिल्पा ने मेरा लंड पकड़ लिया. फिर शिल्पा बैठ के मेरे लंड को किस्स करने लगी. पहलवान और दल्ले ने भी अपना अपना लौड़ा निकला, और अखिला की टॉप और ब्रा खोल डाली. कमरे की लाइट में एकदम चांदनी जैसी खिल रही थी अखिला. मैरून रंग की चूत, शेव की हुई चूत, गदराई कमर और गदराये मम्मे, कम से कम ३६ साइज़ रहा होगा.अब पहलवान ने अपना लंड अखिला के होठों से रगड़ना शुरू कर दिया. अखिला ने मुंह हिला के लौड़े को चबाने की कोशिश तो की, लेकिन नाकाम रही. पहलवान ने अखिला की चूत में उंगली ड़ालते हुए इशारा किया- आ जाओ भाई. और मैंने आव देखा न ताव, लौड़ा अखिला की चूत के मुंह से लगाया और एक झटके में सर्र से अन्दर. अखिला चीख सी उठी. मैं जोर जोर से धक्के लगाने लगा.पीछे से नंगी होके शिल्पा भी आ गयी. उसने अपने मम्मों को मेरे मुंह पे रखा और जोर जोर से अखिला की चूचीया दबाने लगी. पहलवान ने शिल्पा को दबोच लिया और उसकी चूत में लंड घुसा दिया. दल्ले ने शिल्पा के मुंह में दे दिया, लेकिन नज़र सब की अखिला पे रही.
मैंने अखिला की चूत को तरह तरह के अंदाज़ में चौड़ा. उसके मम्मों को जोर से दबाया, चबाया, उधर से शिल्पा बार बार अखिला के निप्पल चबा रही थी. पहलवान रह रह के उसकी चूचियों पे च्यूंटी मार देता था. इतना क्रूर व्यवहार देख के मेरा लंड और सख्त हुआ जा रहा था. मैंने पहले अखिला को उसकी कमर पे लिटा के चौड़ा, फिर उसे कुत्ती बना के चौड़ा, फिर उसे साइड पे लिटा के चौदा. फिर उसका सर फर्श पे, और टाँगे बिस्तर पे, ऊपर नीचे करके चौदा. चौदते चौदते थक गया तो उसके मुंह में लंड ड़ाल के चुसाने लगा. फिर उसके मम्मों को अपने लंड पे रगडा. इस बीच पहलवान ने अपनी उंगली पे एक क्रीम लगा के अखिला की गांड में घुसेड दी. शिल्पा ने आँख मारी. इन सब को पता है के मैं गांड का कितना शौक़ीन हूँ, मैंने सोचा. फिर मैं अखिला को बिस्तर पे औंधा करके उसकी गांड से लौड़ा लगाया. अखिला ने आह भरी और मेरा लौड़ा सरकते सरकते घुसता चला गया.फिर मैंने जोर जोर से अपनी पंजाबन की गांड मारनी शुरू कर दी. मैं वहशी की तरह उसके चूचों को मसलता रहा, उधर से पहलवान अखिला के चूचे को अपनी और यूँ खींच रहा था के नोंच के अपने साथ ले जाएगा. इतने सुन्दर और टाईट चूचे, के पूछो मत. एकदम रुई जैसे निप्पल, पहले मैं हाथों से उसके निप्पल रगड़ता रहा, नोंचता रहा और चुंटी मारता रहा, फिर मैंने उसकी गांड से लंड निकला और निप्पल पे रगड़ता रहा. फिर मैंने उसकी गांड से निकला लंड उसके मुंह में ड़ाल दिया. “बहन की लौड़ी, इन दल्लों से चुदना चाहती थी ना, अब अपनी गांड का स्वाद चख”, मैंने सोचा, लेकिन कहा नहीं. ऐसा मैंने ३-४ बार किया. शिल्पा ने वायग्रा न दी होती तो कब का वीर्य निकल चूका होता, लेकिन लौड़े ने फुन्फ्कारें मारते हुए अखिला के तीनों छेदों- मुंह, गांड और चूत का बहुत बुरा हश्र बनाया. फिर मैंने सोचा के टू-इन-वन करते हैं, पहलवान को बुलाया, पहलवान ने कंडम पहना, फिर पहलवान नीचे लेता, अखिला उसके ऊपर, मुंह नीचे करके, पहलवान ने उसकी चूत में लौड़ा घुसाया और मैंने उसकी गांड में. फिर दोनों ने इतनी जोर से इतनी कास के पेला, के मज़ा आ गया. मेरे और पहलवान में हौड सी लगी थी के कौन जोर से चूची दबाता है और कौन जोर से गांड चौड़ी करता है और कौन जोर से धक्के लगता है. पहलवान ने भी वायग्रा ले रखी थी! हैरानी और ख़ुशी मुझे इस बात की होती रही के अखिला मज़े ले रही थी. अब मेरी पहलवान से ऐसी यारी हुई के इस के बाद कई और लड़कियों का उद्घाटन हम ऐसे ही करेंगे, लेकिन वो कहानी बाद में.
काफी देर तक चुदाई के बाद शिल्पा ने हमे ज्वाइन कर लिया. दल्ले ने अखिला के मुंह में लंड डाला और शिल्पा ने अखिला के दोनों हाथ ठाम लिए. दल्ले ने अखिला का सर पकड़ के उसके हलक तक अपना लंड ठूंस दिया. अखिला की आँखों से आंसूं से आ गए. मैंने धक्के धीरे किये तो शिल्पा बोली- कोई बात नहीं, ये नोर्मल है. बोल के उसने अखिला की चुचियों पे अपने दांत गदा दिए. पहलवान ने भी धक्के जोर कर दिए. मेरे अन्दर का जानवर मजे ले रहे था और मैंने भी धक्के ज़ोरों से मारने शुरू कर दिए. दल्ला अपने लौड़े को अखिला के हलक तक पूरा घुसा देता, फिर पूरा निकाल लेता, साथ में लार सी निकल आती. शिल्पा हटी, उसने अपना पुर्से खोला और कपडे टांगने वाले कलिप निकाल लाई. मैंने सोचा, इसका क्या काम. मेरे देखते देखते शिल्पा ने एक एक क्लिप अखिला के निप्पलों पे लगा दी, अखिला इधर हमारे झटकों से जूझ रही थी, उधर दल्ले के लौड़े से मुंह बंद था और अब ये यातना. कसम से बहुत मजा आ रहा था. शिल्पा ने क्लिप्स ले के अखिला के नाक पे, पेट पे, कांच में, और जितनी नर्म जगह नज़र आयी, वहाँ लगा दिए. अखिला पसीने पसीने हुई जा रही थी, पूरा शरीर गौरे की बजाय एकदम लाल और जहां जहां क्लिप्स लगाई थी, वहाँ वहाँ से एकदम सुर्ख लाल. फिर शिल्पा कभी क्लिप्स को खींचती, कभी हिलाती, एकदम मजे ले रही थी. हम इधर ज़ोरों से धक्के देते रहे. थोड़ी देर बाद मैं थक गया तो मैंने कहा, अबी अकेले मैं चौदूंगा. दोनों मान गए और मैंने अखिला को साइड पे लिटाया, गांड में लंड घुसाया, हाथों से उसके शरीर पे कभी चूंटी मारी कभी उसके कूल्हों के बीचे में रख उसकी गांड खोलने की कोशिश की, कभी क्लिप्स खींची. मुझे ये बताते हुए शर्म आती अगर अखिला ने बाद में कहा न होता के उसे भी मजा आया था. खैर, जम के चुदने के बाद जब मेरा वीर्य निकला, मैंने अपना काण्डम उतारा और सारा माल अखिला के मुंह पे निकाल दिया. उसकी गर्दन कास के पकड़ी के वो थूक न पाए, और वो गतागत पी गयी. उसकी आँखों में थोड़ी नमी सी थी, शायद वीर्य के स्वाद से, शायद योन-यातना से. मैं एकदम मर सा गया, इतनी थकान हो गयी थी. मैं लेता और खर्राटे लेने लगा. थोड़ी देर में आँख खुली, दल्ला और पहलवान दोनों अखिला की आगे और पीछे से ले रहे थे. एकदम जानवरों की तरह, कभी अपने नाखून, कभी दांतों और कभी क्लिप्स से जगह जगह यातना देने से नहीं चूक रहे थे. मेरा लंड फिर खड़ा हो गया. अब अखिला के मुंह में देने का मेरा नंबर था.

उस रात बहुत चुदाई हुई, दोनों लड़कियों की. शिल्पा भी न बच पायी, उसका भी नंबर आया. उसकी गांड में तो पहलवान और दल्ले दोनों ने एक साथ लंड डाले. उनके घर की बात, मैं कौन होता हूँ.

अगले दिन सुबह जब अखिला की आँख खुली तो मैं एकदम तैयार था. मैंने उससे पूछा के कैसा लग रहा है, वो बोली के बहुत मजा आया पार्टी में. फिर करेंगे दुबारा. उसके शरीर पे रात भर के नोचने के निशाँ साफ़ नज़र आ रहे थे. मैं मुस्करा दिया. मुझे एक खटका हुआ लेकिन, के कहीं दल्ले और पहलवान ने उसे कोई दवाई तो नहीं पिलाई थी के उसे कुछ याद न रहे. मैंने सुना तो है के ऐसा कुछ होता है, लेकिन उसका इस्तेमाल गैर कानूनी भी है और मेरे उसूलों के खिलाफ भी. मैंने ज्यादा उस रात के बारे में कभी अखिला से बात न की, लेकिन जो मज़ा उस रात आया, बहुत कम बार आया है. और ऐसे मौकों में ज्यादातर पहलवान भी मेरे साथ था.

अगले अंक में मैं आपको बताऊंगा के अखिला ने कैसे मेरी मदद की दिया को चुदाने में.

Sunday, March 20, 2011

रूचि और उसकी मस्त गांड

दोस्तों, पिछले अंक में मैंने आपको स्वाति की चुदाई की कहानी सुनाई थी. स्वाति का पहला टाइम था और अपुन इस टाइम तक एकदम एक्सपर्ट हो चुके थे. स्वाति की चुदाई उसके बाद भी बहुत बार हुई, लेकिन मेरे स्मृति-पटल पे सबसे साफ़ तस्वीर सिर्फ २-३ बार की है, पहली बार वाली, एक बार जब मैंने पहली बार २ लड़कियों को एक साथ चौदा था और एक बार जब हम एक स्विंगर क्लब गए थे. मैं कोई कासानोवा तो नहीं, लेकिन चुदाई के मामले में मेरी किस्मत बहुत अच्छी रही है. शायद इसलिए कोई लड़की मेरे साथ शादी करने को तैयार नहीं होती क्यूंकि उनके लिए मैं सिर्फ एक मजे का जरिया हूँ. मुझे ऐसी कोई शिकायत फिलहाल तो नहीं है, जब होगी, तब देखा जाएगा. अभी तो मैं सिर्फ भगवान् को धन्यवाद ही दे सकता हूँ मुझे कामदेव का अवतार बनाने के लिए. स्वाति के साथ मैंने मुश्किल से एक साल गुजारा होगा के उसने मुझे छोड़ के किसी और का हाथ पकड़ लिया और उससे शादी भी कर डाली. खैर, मेरा एक ही सन्देश है उस के लिए के – जब याद तुम्हारी आती है, उठ उठ मारा करते हैं. लेकिन मैं ये बात भी साफ़ कर दूं के ना तो स्वाति मुझ से चुदने वाली पहली लडकी थी और ना आख़री. वैसे मैं थोड़े में संतोष करने वाला प्राणी हूँ, जब लड़कियां न मिलें तो कॉल गर्ल्स से भी गुजारा किया है मैंने. उनके किस्से भी जैसे जैसे मौके मिलते रहेंगे, आप को ज़रूर सुनाऊंगा.

इस बार मैं अपने दोस्त की गर्ल फ्रेंड के साथ पहली बार चुदाई की कहानी सुनाऊंगा. आप को शायद याद हो, पिछली कहानी में मेरा स्वाति से परिचय मेरे दोस्त की गर्ल फ्रेंड रूचि ने करवाया था. अब मैं बहुत फक्र से तो नहीं कह सकता के मैंने अपने दोस्त की गर्ल फ्रेंड को पेला, लेकिन कम से कम शुरुआत मैंने नहीं की थी. अब मेरा दोस्त और रूचि आपस में शादी-शुदा हैं, मेरे साथ कोई बोलचाल भी नहीं है, तो उतना बुरा नहीं लगता. खैर, मैं भी कहाँ सफाइयां देने लगा, आप लोग भी बोर हो रहे होंगे, मैं अपनी कहानी शुरू करता हूँ.

मैंने रूचि को मेरे दोस्त की गर्ल फ्रेंड बनने से पहले भी देखा था, लेकिन तब वो काफी छोटी थी, १७-१८ साल की उम्र में कॉलेज में आयी थी. मेरे दोस्त ने बहुत पीछा किया. मेरी उससे तमीज़ से मुलाक़ात कोई २ साल बाद हुई थी, मेरे दोस्त के अपार्टमेन्ट पे. दोनों साथ में काफी खुश दीखते थे और दोनों का ही लॉन्ग-टर्म का प्लान था. रूचि काफी सुन्दर भी थी और काफी फ्रेंडली भी. फोटो में या फिल्म में चिपकना कोई बड़ी बात नहीं थी. मैं ठहरा छोटे शहर वाला आदमी, छोटी बुद्धि. जब भी फोटो खिंचवाने में वो मेरा बाजू पकड़ के खड़ी होती तो उसका मम्मा मेरे बाजू को छू जाता और मेरा लंड फुन्फकारें मारने लगता. उसकी गांड पर हमेशा मेरा ख़ास ध्यान रहता था. रूचि की गांड के नाम की बहुत मुटठ खराब की लेकिन कभी कोई संगीन इरादा नहीं बनाया चुदाई का. वो सब कुछ एक दिनों में बदल गया जब उसने मेरी मुलाक़ात स्वाति से करवाई. मैंने स्वाति की कैसे चुदाई की, उसकी कहानी तो आप से छिपी नहीं है, अब मैं आगे की कहानी बयान करता हूँ. कभी वक़्त मिलेगा तो उससे पहले की कहानी भी सुनाऊंगा. वैसे मित्रों, क्षमा करना, अगर मेरी हिंदी टाइपिंग में थोड़ी गलतियाँ हों. मुझे लोगों से चोरी छिपे अपनी डायरी लिखनी पड़ती है.

तो दोस्तों, उस शनिवार की चुदाई के बाद स्वाति मेरे यहाँ ही सो गयी. लेकिन उसकी शर्म की हद ये के चूत चुदवा के चोदु के साथ सो रही है और कपडे पहन के! उस रात लौड़े में २-३ बार उफान आया और मैंने लौड़ा स्वाति की गांड पे रगडा, लेकिन स्वाति को नींद ज्यादा प्यारी थी. सुबह के ५ बजे होंगे के लौड़े से और रहा नहीं गया. मैं खड़ा हुआ और अपना खड़ा लंड निकाल के स्वाति के होंठों पे रख दिया. स्वाति ने ज़रा ज़रा आँखें खोली लेकिन बिलकुल आश्चर्य ना जताया और मुंह खोल के लौड़े का सुपाडा मुंह में ले लिया और हाथ से मेरा लंड पकड़ लिया. उसके नर्म नर्म हाथ लौड़े के सामने एकदम छोटे छोटे लग रहे थे. फिर उसने अपनी जीभ को थोड़ी देर सुपाड़े पे फिराया और अपने हाथ से लौड़े को दबाते हुए ऊपर की चमड़ी को आगे से पीछे ले गयी. मेरा सुपाड़ा एकदम सख्त हो गया. मैंने आँखें बंद करके अपना मुंह ऊपर कर लिया और मेरे मुंह से एक आह निकल पडी. स्वाति लौड़े को मुंह में लिये लिये बैठ गयी. फिर उसने लौड़ा चूसना शुरू कर दिया और अपने हाथ से मेरे लंड को मुठीयाने लगी. थोड़ी देर में उसने लौड़े को मुंह से निकाला और अपनी जीभ से लौड़े के सुपाडे पे फिराने लगी. फिर वो लौड़े को पकडे पकडे अपनी जीभ को सुपाडे से नीचे दोडाते हुए टटटों तक ले गयी और फिर वापिस अपनी जीभ फिराते और सुपाडे को मुंह में भर लिया.

मैंने सोचा, इसने चुदाई तो नहीं करवाई, लेकिन लौड़ा ज़रूर चूसा है. या हो सकता है कोई ब्ल्यू फिल्म देख के सीखी हो. खैर, मेरा लंड पानी पानी हुआ जा रहा था. मैंने अपनी कमर एक और मोड़ के नीचे झुक के उसका चूचा पकड़ लिया. स्वाति और जोर जोर से चूसने लगी और अपने हाथ से और जोर जोर से लौड़े को मुठीयाने लगी. मेरा वीर्य विसर्जन हो ही जाता अगर मैं उसका हाथ ना रोकता. मैंने उसका हाथ हटाया और बोला – मुंह से चूसो ना,हाथ से तो मैं भी मुटठ लगा लेता हूँ. वो मुस्कराई के नहीं, पता नहीं क्यूंकि उसके छोटे से मुंह में मेरा मोटा लंड घुसा बैठा था, लेकिन उसकी आँखों की शरारत से लगा के अब वो सिर्फ लौड़ा चूसने वाली है. मैंने उसका मम्मा जोर से भींच रखा था और दूसरा हाथ उसके सर के पीछे लगा के लौड़ा उसके मुंह में और घुसाने का प्रय्तन किया, लेकिन आधे से ज्यादा उसने घुसने ना दिया. बड़ी ज़ोरों से लौड़ा चूस चूस से वो बीच बीच में मुंह से निकाल लेती और लौड़े के इर्द गिर्द किस्स करने लगती. जैसे जैसे मेरा लौड़ा वीर्य निकालने के नज़दीक आता रहा, मेरा मम्मे पे दबाव बढ़ता रहा. जैसे ही माल निकलने वाला था, मैंने अपना लौड़ा उसके मुंह से निकाला और जोर से चूचा दबाया और दुसरे हाथ से उसके बाल खींच डाले. इस बार पिचकारी सीधे आँखों में जा गिरी. मैंने उसके नर्म गालों, होठों और यहाँ तक के नाप पे भी लौड़ा रगडा और वापिस मुंह में डाल दिया. जब तक उसका लौड़ा चूसना सहन हुआ, चूसाता रहा और फिर निकाल लिया. वो एक हाथ से अपनी आँख को ढके बैठी थी. हाथ हटाया तो देखा के उसकी बांयीं आँख में मेरा वीर्य भरा हुआ था. उसने आँख बंद कर रखी थी. फिर वो साफ़ करने के लिये उठ खड़ी हुई और नाहक ही बिगड़ने लगी. थोड़ी देर बाद बोली – ओह, रूचि दोपहर तक घर से वापिस आ जायेगी. मुझे वापिस जाना पड़ेगा, उसे पता नहीं चलना चाहिए के मैं यहाँ सोयी थी. मैंने बहुत मनाने की कोशिश की के लंड एक दो घंटे में फिर टनाटन हो जाएगा और एक और राउण्ड का समय है, लेकिन मेरी एक ना चली और मुझे उसे वापिस छोड़ के आना पड़ा.

अगले दिन सुबह जोग्गिंग जाने का प्रोग्राम बना. ये प्रोग्राम अगले एक साल तक बीच बीच में बनता ही रहा. लेकिन सुबह जब मैं उसके घर के सामने पहुंचा तो वो अकेली नहीं, रूचि भी स्वाति के साथ थी. मैंने थोडा आश्चर्यचकित रह गया. मैंने रूचि को कभी ऐसे नहीं देखा था – ग्रे रंग की सपोर्ट ब्रा और एकदम टाईट छोटी सी काली शोर्ट्स. स्वाति ने भी टाईट टी-शर्ट और जोग्गिंग लोअर पहन रखा था. स्वाति बोली के रूचि भी साथ आना चाहती थी. मैंने कहा, के ये तो और भी बढ़िया है. रूचि से थोडा शर्मा भी रहा था के कंही उसकी गांड पे घूरता ना पकड़ा जाऊं. रूचि बोली- “क्या बात है, क्या बात है. मिले हुए २ दिन ही हुए और साथ साथ जोग्गिंग भी शुरू कर दी.” मैंने सोचा- “जोग्गिंग क्या है मेरी जान, चुदाई भी शुरू कर दी. २ छेदों में तो घुसा चुका हूँ, बस गांड बाकी है.” लेकिन साथ में ये भी सोचता रहा के स्वाति ने शनिवार रात के बारे में कितना कुछ बताया है. मैं खुद से बताना नहीं चाहता था के हम लोग अब बॉय-फ्रेंड गर्ल-फ्रेंड हैं. हिन्दुस्तानी लड़कियों को ना जाने क्यों खुले आम ये बताने में दिक्कत होती है के हम अब बॉय-फ्रेंड गर्ल-फ्रेंड हैं, भले ही आयी रात चुदाई होती हो. या तो सिर्फ दोस्त या सीधे मंगेतर. सो, मुझे पता नहीं था के स्वाति ये बात पब्लिक के सामने बताना चाहती है के नहीं, सो चुप रहा. कहीं चुदाई से भी हाथ धो बैठूं. कम से कम रूचि को इस तरह की कोई प्रोबलम नहीं थी. ये बात और है के उसके बॉय-फ्रेंड ने मुझे कभी ये नहीं बताया के वो चुदाई करते हैं के नहीं, लेकिन इतनी माल लड़की को जो ना चोदे, वो मूर्ख है. अपने दोस्त से मुझे इतनी तो उम्मीद थी के आनंद उठा रहा होगा. लेकिन प्यार में लोग अक्सर मूर्ख बन जाते हैं. ये बात मेरी समझ में कभी नहीं आयी क्यूंकि मेरा सारा ध्यान हमेशा एक ही तरफ रहता था. मैं ऐसे ही सोचों में खोया था के रूचि ने मुझे जगाया, “क्या हुआ, मैं तो मजाक कर रही थी”, वो बोली. इससे पहले मैंने कभी ध्यान नहीं दिया था के उसकी आवाज़ भी इतनी सेक्सी थी – एकदम अलीशा चिनॉय के जैसे, के आवाज़ सुन के ही खड़ा हो जाए. मैं दिमाग में तस्वीरें बनाने लगा के बोलेगी – “हाँ हाँ, और जोर से, गांड में घुसाओं, जल्दी, आह, .., सी सी” तो कितना मज़ा आएगा. लंड में हलचल होने लगी, लेकिन मैंने सोचा के अब छुपाने की क्या ज़रुरत है, एक लडकी तो काबू में है ही. लौड़े को खड़ा देख के शायद इसका भी दिल मचल जाए. दिल मचला के नहीं, पता नहीं, शायद मेरे ख्यालों में ही मेरा लंड इतना बुरी तरह खड़ा था के बाहर से नज़र आ जाए.

सो, हम लोगों ने जोग्गिंग शुरू की. पहले तो हम साथ साथ थे, अपनी कनखियों से दोनों प्यारी प्यारी लड़कियों के गोल गोल मम्मे उछलते देख के एकदम दिल हलक तक आ गया था. आगे गली में थोड़ी कम जगह थी, हमारी बाजूएँ एक दुसरे से बीच में छु जाने लगी. मैं पीछे हो लिया. अब मेरे आगे आगे दो एकदम खूबसूरत कन्याएं अपनी गांड मटका मटका के जोग्गिंग कर रही थी. मेरी नज़र कभी एक गांड पे कभी दूसरी पे. रूचि की गांड एकदम टाईट लग रही थी और लम्बी चीकनी टांगें एकदम जैसे लौड़े को आमंत्रण दे रही थी. बाजू सेजाती हुई एक कार वाले ने शायद मेरी एकटक नज़र देख के जोर से होर्न बजाया. “क्या पीछे से हमे देख के मजे ले रहे हो?” रूचि ने फिर मेरी सोच भंग की. मैं थोडा शरमाया और मेरा चेहरा शायद लाल हो गया. रूचि फिर बोली -” अरे अरे, मैं तो मजाक कर रही थी”. मैं मुस्कराया तो बोली – “कोई नहीं, ले लो मजे”. अपना राऊंड पूरा करके उन को उनके घर छोड़ के मैं वापस अपने घर आ गया. हमेशा की तरह क्लास जाने का मन नहीं था.

घर बैठे बैठे मैं बार बार रूचि की गांड के बारे में सोचता रहा. रूचि ने पहले कभी मेरे साथ फ्लर्ट नहीं किया था, इसलिए जो उस ने बोला, उसके बारे में सोच सोच के लंड खड़ा करता रहा. हमे फ्लर्ट करने के ज्यादा मौके भी नहीं मिले थे, ज्यादातर उसका बॉय-फ्रेंड करण साथ रहता था. मैंने काफी कोशिश की के रूचि की गांड का ख्याल अपने दिल से निकाल दूं, लेकिन नाकाम रहा. जैसे ही आँखें बंद करता, उसकी गांड मेरे सामने आके मचलने लगती और रूचि की आवाज़ मेरे कानों में गूंजने लगती – ले लो, ले लो मजे. किसी दोस्त से मैंने कभी धोखा नहीं किया था, ख़ास तौर पे लड़कियों के पीछे. फिर सोचा के अगर रूचि गांड मरवाने पे आमादा ही है, तो किसी और से मरवाएगी. उलझन में मैंने पूरा दिन निकाल दिया. शाम को दोस्तों से मिला, लेकिन खराब मूड में. दोस्तों ने समझा के मैं स्वाति पे सेंटी हूँ, इसलिए ऐसे उखड़ा हुआ हूँ.

अगले कुछ दिन ऐसे ही गुजरे, सुबह हम लोग जोग्गिंग पे जाते, रूचि साथ आ जाती और मेरे आगे आगे दौड़ने लगती. मैं उसकी गांड पे घूरने लगता और वो फ्लर्ट करने लगती, वो भी स्वाति के सामने. मुझे और स्वाति को पूरे हफ्ते ज्यादा मौका नहीं मिल पाया चुदाई का. अब मुझे एक बात और खटकने लगी के करण साथ में क्यूँ नहीं आता. दिन में जब मिलता तो उसने कभी सुबह की जोग्गिंग के बारे में कभी बात नहीं की. “हम्म, तो रूचि ने इसे बताया नहीं है”, मैंने सोचा.

बहुत लम्बी चौड़ी बात न बताते हुए मैं सिर्फ इतना बताता हूँ के इस बार वीकेंड पे स्वाति का नंबर था घर जाने का, सो रूचि अपने यहाँ अकेली थी. मुझे ये बोल के बुला लिया के बोर हो रही हूँ, टीवी पे मूवी देखते हैं. मैं लंड उठा के पहुँच गया. शाम का समय था और रूचि ने सोने जैसा माहौल बना रखा था. एकदम पारदर्शी नाईटी में उसकी ब्रा और पेंटी साफ़ नज़र आ रही थी. हम लोग फिल्म देखने बैठे तो एकदम चिपक कर बैठ गयी. अपने मम्मे मेरे बाजूओं से सटा कर. मेरा लंड खड़ा हो गया और जींस के ऊपर से भी नज़र आने लगा. रूचि बोली- सब नज़र आ रहा है, और हंसी. फिर उसने खुद ही अपना हाथ मेरे लंड पे रख दिया और ऊपर ऊपर से सहलाने लगी. लौड़ा सख्त होता गया. मैंने भी अपना हाथ उसकी कमर में दाल के नीचे की और ले जाते हुए उसका कूल्हा पकड़ लिया. बरसों से उसकी गांड के नाम की मुठ लगाने के बाद आज पहली बार हाथ में आयी थी. मैंने अपना हाथ उसके कुल्हे के नीचे घुसाने की कोशिश की तो उसने अपना कूल्हा उठाया ताकि मेरा हाथ अन्दर घुस पाए. मैंने अपना हाथ पूरा उसके कूल्हे के नीचे डाल दिया और जोर जोर से दबाने लगा. रूचि सिस्कारियां भरने लगी और मेरे लौड़े को दबाने लगी. फिर उसने मेरी पेंट की चेन खोल के टटोला और मेरी चड्ढी में हाथ डाल के लंड बाहर निकल लिया. फिर उसके होंठ मेरे लौड़े से लिपट गए और मैं ज़ोरों से उसकी गांड दबाने लगा. दूसरे हाथ से मैंने उसके मम्मे दबाने शुरू कर दिए. वो लौड़ा चूसती रही और मैंने उसके गाऊन में हाथ डाल के उसकी ब्रा खोल दी. फिर उसकी ब्रा ऊपर सरका के मैंने उसके दोनों निप्पलों पे जोर से चुंटी लगा दी. “उफ़, मत करो, दर्द हो रहा है” रूचि बोली तो मैंने अपने एक हाथ से उसके दोनों मम्मों को साथ साथ पकड़ के आपस में मिलाने की कोशिश की. उसके निप्प्ल एकदम रेशम की तरह चिकने और नर्म थे. मैं बोला – रूचि, तेरे मम्मे बहुत मस्त हैं. “हें हें हें, तुम्हारा लंड भी बड़ा मस्त है”, वो बोली. उसके मुंह से ऐसे शब्द सुन के मैं हैरान भी हुआ और खुश भी हुआ. मैंने उसको खड़ा करके एकदम नंगा कर दिया और अपने कपडे भी उतार फेंके. अब मेरी झिझक भी खुल गयी थी

दोस्तों, गांड मारने के बारे में काफी पढ़ा था के तैय्यारी करनी पड़ती है, वगैरह. लेकिन यहाँ अगर तैय्यारी की सोचता तो शायद रूचि की गांड कभी न मिल पाती. मेरा दिमाग काफी तेजी से काम कर रहा था और मैंने उसके कपडे भी उतार फेंके. अब मैं नंगा, मेरा तना हुआ लौडा, रूचि नंगी, उसके मम्मों पे मेरे कसते हाथ, उसकी फुदकती चूत और कोमल, प्यारी, राजदुलारी गांड. मैं अपने हाथों से उसके मम्मे और भी ज़ोरों से रगड़ने लगा, रूचि ने मेरे हाथ अपने मम्मों से हटाने के कुछ क्षीण प्रयास किये लेकिन इतने सालों के बाद हाथ में आने के बाद इतनी आसानी से थोड़े न छोड़ता. खूब मम्मे दबा के और निप्प्ल चूस चूस के मेरे हाथ नीचे खिसके और एक हाथ लगा चूत को सहलाने तो दूसरा उसकी गांड से खिलवाड़ करने लगा. बाजू में डाबर आवला केश तेल पड़ा था, मैंने थोडा सा उंगली पे डाला और उंगली घुसेड दी उसकी गांड में. रूचि काफी आश्चर्यचकित हो उठी. “क्या कर रहे हो?”, बोली. तो मैंने कहा, कुछ नहीं, मजे ले रहा हूँ. मैं एक ऊँगली उसकी गांड में और दूसरी उसकी चूत में अंदर बाहर करने लगा. रूचि मेरे लौड़े को अपने हाथों से सहला सहला के मानो सांत्वना सी दे रही हो. अब लौडा इतना सख्त हो गया था के फुन्फ्कारें मारने लगा और मैंने आव देखा न ताव, चूत से लंड लगाया और हौले हौले से घुसना शुरू किया. इतनी टाईट चूत के लंड महाराज के मुंह से सिसकारी निकल पडी. मैंने रूचि को घूर के देखा, क्या हुआ, मेरा दोस्त नहीं लेता तेरी जो इतनी टाईट है? वो बोली, के नहीं – शादी से पहले नहीं करना चाहता. मुझे थोड़ी शर्म सी आयी और ठीक भी लगा के एक बिचारी लडकी के जीवन में थोड़ी ख़ुशी (और थोडा सा लंड) प्रदान कर पा रहा हूँ. लंड एकदम फँस के बैठ गया उसकी छूट में तो मैं थोडा थोडा अन्दर बाहर करने लगा. रूचि के चेहरे पे दर्द और आनंद के मिले जुले भाव थे. मैंने चुदैयी थोड़ी तेज कर दी और जोर से गांड यूँ दबोच ली के एक हाथ में एक कुल्हा और ज़ोरों से ऐसे दबाई के बीच में से एकदम चौड़ी हो जाए. मेरे धक्के तेज़ होते गए और छूट के गीलेपन के चलते ज़ोरदार “फच्च फच्च” की आवाज़ आने लगी. मैंने रूचि को उल्टा करवाया और कुतिया स्टाइल में उसकी चूत में लंड दे के ज़ोरों से झटके देने शुरू कर दिए. फिर उसके चूचे थाम के धक्कों का जोर और बढ़ा दिया. फिर मैं अपने हाथों से उसकी पतली, नाज़ुक और चीकनी कमर पर रेंगते हुए उसकी गांड तक ले आया. फिर मैंने थोडा और तेल उसकी गांड पे डाला और एक उंगली से गांड को थोडा टटोला, और इससे पहले के रूचि भांप पाती, मेरा लंड उसकी चूत से बाहर और सुपाडे तक उसकी गांड में. “बहुत दिनों से तेरी गांड पे नज़र थी, रूचि”, मैं बोला. रूचि ने कुछ बोलना चाहा लेकिन बोल न पायी. मैंने लौदा धीरे धीरे अन्दर करना शुरू किया और रूचि ने आंके बंद कर ली और हलके से सिसकारी ली. मैंने रूचि को उसकी साइड पे लिटाया, एक तांड अपने हाथों से ऊपर उठाई ताकि लंड गांड तक पहुँच सके, और अपना प्रयास ज़ारी रखा. थोड़ी देर में हलके हलके से धक्के लगा लगा के लैंड पूरा अन्दर घुस गया था. उस समय की भावना, दोस्तों, मैं किन्ही लब्जों में बयान नहीं कर सकता था. मेरा ताना हुआ सख्त मौत लौड़ा उसके एकदम टाईट गांड में और उसकी हर सांस के साथ मेरे लौड़े पे चरों और से उसकी गांड का कसाव. रूचि आँखें बंद करके लेती रही, मैंने अपनी दौ उंगलिया उसके मुंह में ड़ाल दी और दुसरे हाथ से उसके दोनों चूचों का मर्दन करता रहा. एक एक सेकंड इतना आनंददायी था के लग रहा था पूरे जीवन की साड़ी खुशियों के बराबर हो. फिर मैंने उसके मम्मे कास के दबाते हुए हलके हलके धक्के लगाने शुरू किये. रूचि ने सिस्कारियों के साथ साथ मेरे हाथों पे हलके से चबाना शुरू कर दिया. मैंने धक्के तेज कर दिए और जम के उसकी गांड को चौड़ा. बीच बीच में रुक जाता या लौड़ा निकाल लेता कहीं माल ना निकल जाए. लौड़ा बीच बीच में निकल के घुसाड़ने में ही पूरे पैसे वसूल हो जाते. ऐसे ही करते करते जब समय आया तो मैंने जोर से उसके चूचे दबाये और लंड को उसकी गांड में जितना घुसता था घुसा के अपनी जांघ को उसकी गांड से एकदम जोर से सटा के पिचकारी मारी. तीन चार पिचकारियाँ कम से कम निकली होंगी. फिर मैंने लंड बाहर निकला, उसके मासूम कूल्हों से रगड़ के साफ़ किया और बिस्तर में उसके साथ पड़ा रहा.

“स्वाति के साथ भी यही किया क्या?”, रूचि ने पूछा. मैंने कहा – “नहीं, लेकिन अगर कर पाऊँ तो मज़ा आ जाए”. रूचि ने कहा – चलो, इकट्ठे ट्राई करते हैं. अब मुझे थोडा लगने लगा के इस घटना में दोनों का मिला जुला हाथ था.

एक कहानी

आज फिर बारिश का मौसम है. कई दिनों से बारिश हो रही है, शायद कल धूप निकले. घर बैठे बैठे जब लोगों को पुरानी बातें याद आती हैं तो कभी लोग पुरानी फोटो निकाल के बैठ जाते हैं या फिर आँखें बंद करके पुरानी बातें सोचते रहते हैं. अक्सर अच्छे वक़्त ज्यादा अच्छे लगते हैं और बुरे वक़्त कम बुरे. अब मैंने जैसा कि आप लोगों से वादा किया है के अपनी कहानियां बिना नमक मिर्च लगाए सुनाऊंगा, सो वही बात दिमाग में रखते हुए, मैं ये कहानी बयान कर रहा हूँ.

आज जब पुरानी फोटो देख रहा था तो एक पुरानी फोटो नज़र आयी, मेरे बिस्तर में बैठी स्वाति की – हलके नीले रंग की टी-शर्ट और हलके नीले रंग की ट्रैक-पैंट्स में. शायद हम लोग जोग्गिंग करके लौटे थे या करने जाने वाले थे. स्वाति की आवाज़ कानों में गूँज सी गयी और पुरानी यादें एक सिरहन की तरह सर से नीचे की ओर बहते हुए टांगों के बीच में आके एक झन्नाहट के साथ रुकी. उम्मीद है के आप पूरी कहानी जानना चाहेंगे, सो ये लीजिये:

मैं पहली बार स्वाति से अपने कोलेज के फंक्शन में मिला था. मैं अपने दोस्तों के साथ सज धज के पहुंचा तो देखा एक बहुत ही प्यारी सी लड़की मेरे एक दोस्त की गर्ल फ्रेंड रूचि के साथ खड़ी है. उसकी हंसी एकदम माधुरी दिक्षित जैसी लग रही थी. उसने बड़ी शालीनता से एक पार्टी वेअर टाइप की चोली और ड्रेस पहन राखी थी. मैंने उसे पहले कभी नहीं देखा था या तो रूचि की सहेली है या फिर नयी आयी है कॉलेज में. माल लडकी देखी तो बस जा के चिपक गए. रूचि ने परिचय करवाया – “ये हैं हमारी नयी रूम मेट – स्वाति, अभी इसी साल कॉलेज ज्वाइन किया है”. परिचय करवा के रूचि तो एक ओर खिसक गयी, और हम स्वाति के साथ हो लिए. वो भी नयी नयी आयी थी और दोस्त बनाने के मूड में थी. इतनी माल लडकी और लंड उठने पे उतारू. बड़ी मुश्किल से जैसे कैसे छुपाया. बहुत ज्यादा नर्वस होने पे कई बार काम की बात होठों से निकल ही जाती है, सो हमने स्वाति से मूवी देखने का पूछ ही लिया. हैरानी इस बात की ज्यादा हुई के उसने हाँ भी बोल दिया. खैर, अगले दिन मिलने का प्रोग्राम बना और उस रात की मुठ्ठ का भी जुगाड़ हो गया.

दोस्तों, अगर मेरी कहानी लम्बी लगती है तो फास्ट फॉरवर्ड करके पढ़ लेना. मैं तो धीरे धीरे ही बयान करूंगा. आप समझ सकते हैं के ये मेरे लिए डायरी लिखने के बराबर है और मैं मेरे लिए महत्वपूर्ण घटनाओं को बाहर नहीं छोड़ना चाहता. खैर, ..

अगले दिन मैंने स्वाति को पिक किया. ट्यूब टॉप में और भी माल लग रही थी और अन्दर क्या पहन रखा है, सब पता पड़ रहा था. यहाँ सबको अँगरेज़ बनाने का शौक है, तो अंग्रेजी फिल्म देखने का प्रोग्राम बनाया था. मैं थोडा पछताया के हिंदी फिल्म थोडी लम्बी होती है तो ज्यादा मौका मिलता फिल्म में, लेकिन अंग्रेजी फिल्म में क्या पता कोई सीन हो तो मेरी हिम्मत खुले. खैर, फिल्म देखने बैठे तो दोनों ने अपनी कोहनी सीट के बीच वाले आर्म रेस्ट पे रखी हुई थी. बाजुओं के हलके हलके स्पर्श से मेरे लंड में हलचल होने लगी. एकदम नाजुक और मुलायम मुलायम स्किन थी उसकी. लंड एकदम टनाटन खडा हो गया तो मैंने सोचा के बाजू रास्ते से हटा लूं और देखूं के क्या पता उसकी बाजू फिसल के मेरे लंड पे आ जाए या वो खुद ही मेरा लंड पकड़ ले और मुझे अपनी तरफ से कोशिश न करनी पडे. खैर, इतना तो न हुआ, पर जो हुआ अच्छा ही हुआ. मैंने बाजू उठा के अपने सर के पीछे रखी तो स्वाति बोली- “मेरे कंधे पे रख सकते हो”. ऐसे मौके रोज़ रोज़ तो आते नहीं, सो हमने उसके कंधे पे हाथ रख दिया. अब, मुझे जानते हो तो समझ ही गए होगे के मेरा हाथ धीरे धीरे उस के कंधे पे खिसकता रहा और मम्मों की और बढ़ने लगा. वो लगातार मूवी पे कमेन्ट्स कर रही थी, मैं चुपचाप मुस्करा रहा था और आस पास के लोग श.. श… कर रहे थे. मुझे क्या, मम्मों के इतने नज़दीक आके मैं अब पीछे हटने वाला नहीं था. स्वाति मेरी ओर झुक गयी और मेरे हाथ हलके हलके करते और नीचे सरक गए. अब मेरे हाथ उसके मम्मों के उपरी हिस्से पे थे और एकदम नर्म नर्म जगह पर. पिक्चर चलती रही और मैंने अपनी अंगुलियाँ हलके हलके से घुमानी शुरू कर दी. स्वाति कुछ ना बोली तो मैंने अपना हाथ थोडा और नीचे सरका दिया. अब मेरा हाथ एकदम सख्त कपडे से टकराया. उसने टाईट (शायद पुश उप) ब्रा पहन राखी थी. मेरे हाथ थोडी देर तक उसकी ब्रा के किनारों पे मंडराए और ब्रा के ऊपर पहुँच गए. आखिर उसके चूचे मेरे हाथों में थे. मैं कोई 2-4 मिनट अपनी उँगलियों को उसके चूचों पे फिराता रहा और हिम्मत कर के मैंने अचानक से उसकी चूची को दबोच लिया. वो एकदम खड़ी हो गयी. मैंने सोचा, हो गया काम, लगा थप्पड़. वो बोली के तबियत ठीक नहीं चलो घर चलें. सो हम मूवी के बीच में ही वापिस आ गए. उसको घर छोड़ दिया, रास्ते में बहुत कम बात हुई और मैंने सोचा के अब आगे से कभी मेरे साथ बात नहीं करेगी. खैर, कम से कम चूचे दबाने को तो मिले सो पिक्चर के पैसे वसूल हो गए. उसके चूचों के नाम की उस रात कम से कम 4-5 बार मुठ्ठ मारनी पडी़. शुक्रवार रात थी, सोचा के अगले मंगल-बुध को उसे फो़न करूंगा और देखूँगा के उठाती है के नहीं.

अगले दिन हर शनिचर की तरह ११ बजे तक मैं बिस्तर में पडा़ पलटियां खा रहा था और एक और मुठ्ठ का माहौल बना रहा था के फो़न की घंटी बजी – स्वाति का फो़न था. कम उम्मीद पे ही सही, अच्छा हुआ फो़न उठा लिया. स्वाति ने पिछली रात के लिए सॉरी बोला और बोला के सर में दर्द था. मैं पूछा के इन्तेवार को घूमने चलें तो बोली के इन्तेवार क्यूँ, आज शाम ही चलते हैं, उसकी रूममेट भी नहीं है. मैं अपनी किस्मत पे यकीन नहीं कर पा रहा था. सोचा के अब की बार धीरे धीरे आगे बढूंगा – वो नर्सरी राईम याद आ रही थी – धीरे धीरे लंड को उठाना है, चूत में घुसाना है. बाकी दिन कुछ याद नहीं कैसे काटा. शाम 5 बजे हम फिर सरकार की खिदमत में अपना लंड उठाये पहुँच गए. इस बार जानेमन ने एक झीना सा काला टॉप और एक मेचिंग मिनी पहन रही थी. जब टाईट मिनी में उसकी गांड को मचलते देखा तो दिल किया के अभी लंड रगड़ दूं. बडी मुश्किल से अपने दिल पे काबू रखा.

घूम फिर के शाम के 9 बज गए तो प्रोग्राम बना एक डांस क्लब जाने का. मैंने दो बीयर लगा राखी थी, उसने भी मोडरन दिखने की हौड में एक लगा ली थी. एक ही लग रहा था बहुत थी उसके लिए. मैंने मन में पहले ही डांस का प्रोग्राम बना रखा था तो एक खाकी पेंट के अन्दर एक हल्का सा बोक्सेर कच्छा पहन रखा था, ताकि रगडा रगडी अच्छे से हो. मुझे डांस तो ज्यादा आता नहीं था, लेकिन रगडने के नाम पे कुछ भी करवा लो.

शुरू में बालरूम डांस म्यूजिक चल रहा था तो स्वाति ने मुझे सिखाया के कैसे करते हैं. मैंने अपने एक हाथ से उसका हाथ पकडा़ और दूसरा हाथ उसकी कमर में. उसके कपडों के झीनेपन के चलते उसकी नाजुक और पतली कमर ऐसे महसूस हो रही थी के जैसे मेरे हाथ उसके नंगे बदन पे पडे़ हों. इतनी बढिया फिगर न जाने कैसे बना रखी थी, हर चीज़ एकदम परफेक्ट साइज़ की. डांस शुरू हुआ और मैंने उसकी कमर से अपनी और खींच के अपने बदन से लगा लिया. उसने मेरे कंधे पे अपना दूसरा हाथ रखा हुआ था, लेकिन मेरे खींचने से उसका मुंह भी मेरे मुंह के काफी नज़दीक आ गया. उसने मुंह नीचे झुका लिया. इधर उसकी कमर पे मेरे हाथ की वजह से मेरा लंड खडा़ हो गया और उसके पेट से जा लगा. अब मुश्किल ये के दूर हटूं तो सबको दिखेगा के लंड खडा़ है और नज़दीक रहूँ तो जाने स्वाति क्या सोचे. खैर, जब तक वो शिकायत न करे, तब तक ठीक है.

हम कोई १०-१५ मिनट तक ऐसे ही चिपके रहे-मेरा लंड उसके पेट पे, मेरा हाथ उसकी कमर पे और उसके मम्मे मेरी छाती पे. उसकी गदराई जवान जांघे मेरी जाँघों से सटी थी. तीसरा गाना ख़त्म हुआ तो मैंने हाथ हटाने के बहाने से उसकी गांड सहलाते हुए हाथ नीचे किया. लंड ने हल्का सा झटका सा लिया. स्वाति ने एक्टिंग तो ऐसे की के कुछ ना हुआ हो, लेकिन सवाल ही नहीं के मेरे लंड की सख्ती ने उसके पेट को न गोद डाला हो. लेकिन बाई गोड, क्या नर्म गांड थी. जी चाह रहा था के दोनों हाथों से दोनों गदराये कुल्हे पकड़ के मसलता रहूँ. ऐसी सोचों से लंड और टाईट हुआ जा रहा था. अब तक लंड का सुपाडा़ थोडा गीला भी होने लगा था. मैंने सोचा और थोडी देर यूँही लगा रहूँ तो यहीं माल निकल जाएगा और पेंट भी गंदी हो जायेगी. फिर बाद में ज्यादा कुछ करने लायक भी न बचूंगा. खैर, डांस के बाद हम लोग कोने में बार के पास जाके खडे हुए. उसने एक कोल्ड ड्रिंक लिया और मैंने एक और बीयर. वो मुड़ के डांस फ्लोर की और देखने लगी और मैं उसके साथ वाले स्टूल पे बैठ गया. वो हल्की हल्की झूम रही थी और उसकी गांड मेरे घुटने से हलके हलके से छुए जा रही थी. मैंने अपना हाथ बढा के घुटने पे रख दिया लेकिन वो अपनी जगह खडे वैसे ही झूमती रही. अब उसकी गांड मेरे हाथ के पिछले तरफ टकरा रही थी. मैंने इधर उधर देखा, मेरे पीछे बार काउंटर था और कोई कुछ देख नहीं सकता था, तो मैंने अपना हाथ घुमा लिया. अब उसकी गांड मेरी हथेली से लगे जा रही थी. पहले हलके हलके और फिर मैंने थोडा जोर भी लगाना शुरू कर दिया और अपना हाथ सीधे उसकी गांड पे रख दिया. वो वैसे ही झूमती रही. मैंने अपनी हथेली पूरी खोल ली. अब मेरा बांया हाथ उसके दांयें कूल्हे के एक किनारे से गांड के बीच की दरार तक फैला हुआ था. मैंने हाथ और जो़र से उसकी गांड पे सटा दिया. अब मैंने उसका कूल्हा पकड़ रखा था और वो मस्त अनजान सी बनी झूम रही थी. उसके होठों पे एक हल्की हल्की मुस्कान थी. उस की गांड नर्म भी थी और टाईट भी. उसकी मिनी का कपडा पतला था और मैं उसकी पेंटी ऐसे महसूस कर रहा था के जैसे मेरे और गांड के बीच में बस पंटी का फासला हो. मैंने देखा के वो कुछ बोल नहीं रही तो मैंने अपनी अंगुलियाँ उसकी गांड के बीच में घुसा दी. अब भी उसने कुछ न बोला तो मैंने उसकी गांड को जो़र से दबा दिया. वो फिर भी कुछ ना बोली, वैसे ही खडे़ खडे़ झूमती रही. मैं उसकी गांड दबाता रहा. मेरा लंड अब उफान मार रहा था. मैं उसके पीछे खडा़ हो गया और अपना बायाँ हाथ उसकी गांड से हटा के उसके बायें कुल्हे के बाजू में रखे उसके पीछे सट के खडा़ हो गया. हमारे कोने में अँधेरा था तो किसी के देखने का ज्यादा डर था नहीं. वैसे भी बाकी लोग एक दुसरे में मशगूल थे. एक महिला के मम्मे एकदम बाहर झूल रहे थे, बस निप्पल न जाने कैसे छिपे थे. एक और जोडा़ एक कोने में चुम्मा चाटी में लगा था. लड़का कम उम्र का था और आंटी कोई ३५ साल की. ऐसे माहौल में एक लडकी की गांड से लंड सटा के खडे़ होने पे किसका ध्यान जाना था. वैसे भी ये तो आये दिन बसों में होता रहता है, सो नया क्या था. खैर, बेकार की बातें कम और मतलब की बात ज्यादा. मैं एकदम स्वाति की गांड के पीछे लंड लगा के खडा़ था. लंड एक और मुड़ के उसके एक कूल्हे और मेरी जांघ के बीच में आ गया. इतनी मस्त गांड से लंड लगाये बहुत वक़्त हो गया था, सो एकदम आनंद आ गया. उसने भी अपनी गांड पीछे कर करके एकदम मेरी जाँघों से सटा दी. उसके कूल्हों और मेरी जाँघों में बस कपडों़ की २-३ तहों का फासला था. मैंने अपने कूल्हे धीरे धीरे घुमाने शुरू कर दिए, यानी के उसकी गांड पे झटके लगाने शुरू कर दिए. मैं बीच बीच में अपने हाथों से उसकी गांड भींचता रहा और ऐसे ही झटके लगता रहा. कोई १०-१५ मिनट झटके लगा के वीर्य तो निकला नहीं उलटे लंड और टाईट हो गया. मैंने उसकी गर्दन से उसके प्यारे प्यारे बाल एक और करके उसकी सुराही सी गर्दन पे एक चुम्मा लगा दिया. “चलें?” मैंने पूछा. “ओ के”, डार्लिंग ने कहा. मैं उसकी कमर में हाथ डाल के उसे ले वहां से बाहर निकल आया. अब तो चुदाई से कम में बात नहीं चलेगी, मैंने सोचा. बाहर आके जैसे ही हम लोग कार में बैठे, मैंने अपने हाथ को उसकी गर्दन के पीछे लगा के अपनी और खींच लिया और उसके होठों को चूसना शुरू कर दिया. उसकी आँखों में एकदम वासना का नशा छाया हुआ था. उसने अपने होंठ थोडे़ थोडे़ खोले और आँखें ज़रा ज़रा मूँद ली. एकदम नर्म नर्म होंठ और न जाने क्या इत्र छिड़क रखा था, बार के धुंएँ और बीयर के बाद भी एकदम महक रही थी. मैंने एक हाथ उसकी गर्दन के पीछे लगाए रखा और दूसरे हाथ से उसका मम्मा थाम लिया. मैं उस के होंठ चूसता रहा और साथ में मम्मे दबाता रहा. फिर मैंने अपना हाथ उसके कंधे से हटा के उसका हाथ पकडा़ और अपने लंड पे रख दिया. पहली बार उसके चेहरे पे आश्चर्य भाव आया.

मैंने अपने हाथ को उसके हाथ पे लपेटा और अपने लंड को उसके हाथों में थमा दिया. उसने शायद पहले कभी लंड नहीं पकडा़ था, सो बडी नजा़कत से हलके हलके हाथों से ऐसे पकडा़ जैसे रूई से कोई बहुत ही नाजुक घाव को छू रही हो. मैंने उसकी चूची को दबाना जा़री रखा और उसके होठों को चूसता रहा. थोडी़ देर यूँही मजे लेने के बाद मैंने पूछा – “मेरे यहाँ चलें, नयी इंग्लिश मूवी की डी वी डी है मेरे पास”. वो भी जानती थी के मूवी का बहाना है, मेरा इरादा चूत में लंड घुसाना है.

बोली के चलो. सो, हम मैडम को अपने अपार्टमेन्ट में ले आये. अन्दर घुसते ही मैंने उसे पीछे से दबोच लिया. कस के मम्मे पकड़ लिए और जो़र जो़र से दबाने लगा. स्वाति सिस्कारियां लेने लगी. मैंने अपने घुटने मोड़ के अपना लंड उसकी गांड पे लगा के उसे उठा लिया और अपने बेड रूम में ले गया और उसे अपने बिस्तर पे पटक दिया. कुछ सेकंडों में मैं एकदम नंगा था और मेरा लंड हवा में नाच रहा था. वो अब भी अपना मुंह नीचे करके लेटी थी. मैंने उसकी सैंडल उतार के अपना हाथ उसके पैरों पे रख दिया. फिर मैं अपना हाथ उसकी टांगों के ऊपर सरकाने लगा. लंड रह रह के झटके खा रहा था और एक शरारत मेरे दिमाग में आयी. मैंने अपना लंड उसकी एडी पे रखा और उसकी टांग पे रगड़ते हुए ऊपर की और ले जाने लगा. स्वाति की सिसकियाँ तेज़ होने लगी. अब मेरा लैंड उसके घुटने के पिछली और था. मैं अपने लंड को थोडी देर उसके घुटने के पीछे की और रगड़ता रहा. उसकी टांगें एकदम बढिया शेप में थी. बाद में पता चला के वो भी मेरी तरह जोग्गिंग करती थी और योगा वोगा करके एकदम टिप टॉप शेप में रहती थी. फिर मेरे लंड ने ऊपर की और चढा़ई शुरू कर दी. अब उसकी जाँघों के पीछे की और यात्रा करता हुआ मेरा लंड मिनी स्किर्ट के सिरे तक आ गया था. लौडे़ ने सफ़र जा़री रखा और मिनी ऊपर की और सरकती रही और कुछ ही पलों में मेरे लंड का सामना मैडम की चड्ढी से हुआ. सफे़द रंग की चड्ढी में फंसी गांड ऐसे लग रही थी के छोटे से पिंजरे में किसी को ज़बरदस्ती बंद कर रखा हो. मैंने अपने लंड के सुपाडे को पेंटी के ऊपर से ही उसके कूल्हों के बीच में रखा और जो़र लगाया. एक गरमाइश से मेरा लंड भर सा गया. मैं थोडी देर उसकी पेंटी पे लंड रगड़ता रहा और फिर मेरे हाथों ने उसकी पेंटी को पकडा़ और नीचे सरका दिया. जैसे जैसे पेंटी नीचे उतरती रही और उसकी नरम, मुलायम गोल-गोल, गुन्दाज और चिकनी गांड अनावृत्त होती रही लौडा़ और सख्त होता रहा. अब तक मेरा लंड इतना सख्त हो गया था के दीवार में भी छेद कर डाले. स्वाति ने टाँगे आपस में भींच रखी थी. मैंने उसकी टांगें खोली. अब भी उसका मुंह नीचे और पिछवाडा मेरी और था. टांगें खुलने से गांड की लकीर नीचे की और जाते नज़र आने लगी. मैंने अपनी उंगली को उसकी गांड की लकीर पे रखा और नीचे सरकाने लगा. अब स्वाति काँप रही थी और मैं समझ गया के वो अब तक कभी चुदी नहीं है. हे भगवान्! मैंने सोचा, चुदाई धीरे करनी पडे़गी. मेरा दिल उसकी गांड पे आया हुआ था, लेकिन अनुभव से मैं एक बात सीखा था तो ये के पहली बार में ही गांड में घुसाने की कोशिश की तो चूत से भी हाथ धोना पडे़गा. फिर सोचा के पहली बार में चूत एकदम टाईट होगी, और मजा़ वैसे भी आएगा ही.

मेरी उंगली फिसल कर अब एकदम चूत के ऊपर पहुँच गयी थी. चूत कम्पन से ऐसे ऊपर नीचे हो रही थी जैसे वहीं से सांस चल रहा हो. मेरी अंगुली का सिरा चूत तक पहुंचा ही था के स्वाति ने अपने नाखूनों को बिस्तर में गडा दिया. माल तैयार है, मैंने सोचा, लेकिन अभी तो मेरा आनंद शुरू ही हुआ था. मैं लंड घुसाने की ज़ल्दी में नहीं था. मेरी अंगुली का सिरा चूत के छोने से हल्का हल्का गीला होना शुरू हो गया था. मैंने अपनी अंगुली घुसाने की कोशिश की और थोडी देर इधर उधर ढूँढने के बाद मेरी उंगली ज़रा सी अन्दर घुसी. स्वाति ने एकदम जो़र से झटका सा लिया. मैंने उसकी स्किर्ट नीचे उतारी और स्वाति के ऊपर चढ़ के लेट गया. मेरा लंड थोडी कोशिश के बाद अब चूत के मुंह पे बैठा था. मैंने अपने दोनों हाथ स्वाति के हाथों पे रखे और अपनी अंगुलियाँ उसकी अँगुलियों में फंसा दी. उसने कस के मेरी अंगुलियाँ भींच दी. थोडी़ देर मैं उसके कानों पे चुम्मे लेता रहा, फिर थोडी देर होंठ चूसे. फिर मैंने अपने हाथ छुडा़ के उसके सीने के नीचे घुसा दिए और मम्मे जो़रों से दबाने लगा. फिर मैंने स्वाति को पलटा और अब वो अपनी कमर के बल लेती थी. मैंने अपना हाथ उसकी चूत पे रखा और रगड़ने लगा, वो आहें भरने लगी तो मैंने अपना लंड उसके हाथ में पकडा़ दिया. स्वाति आँखें बंद करे करे मेरे लंड को सहलाने लगी. “घुसा दूं?” मैंने पूछा. “इतना बडा़ कैसे इतने से छेद में घुसेगा”, स्वाति ने आखिर पूछ ही लिया. मैं मुस्कराया और मैंने उसका कमीज़ और ब्रा ऊपर सरका दिए. इतने सुन्दर और चिकने चूचे मैंने जि़न्दगी में पहले नहीं देखे थे. एकदम सफे़द, जो़रों की लाली और निप्पल एकदम गुलाबी और सख्त. मैंने अपने दायें हाथ से उसके बाएँ मम्मे को पकड के दबाया तो पाया के अब तक मैं समझ रहा था के ब्रा टाईट है, लेकिन उसके मम्मे भी एकदम टाईट थे. त्वचा एकदम नर्म और चिकनी, मम्मे कम से कम ३४ साइज़ के और एकदम टाईट. पूरी जिं़दगी ऐसे मम्मों से खेलते बिता दूं तो कम है. मैं मम्मों को जो़र जो़र से दबाने लगा और जो़रों से चूसने लगा. “इतनी जो़र से नहीं”, वो बोलती रही लेकिन भूखे के हाथ से कोई खाना थोडे़ छीन सकता है.

फिर मैंने अपने दाँतों से हलके हलके चूचों और खासकर निप्पलों को चबाना शुरू कर दिया. एक बार एक निप्पल पे मूंह तो दूसरे निप्पल पे अंगूठे और तर्जनी (पहली अंगुली) की चिकोटी. मैं ऐसे ही निप्पलों को न जाने कितनी देर मसलता रहा, याद नहीं. वो हलके हलके लंड को सहलाती रही.

आखिर चूत का नंबर आ ही गया. मैंने उसकी टांगें खोल के अपना लंड चूत के मुंह पे रख दिया. फिर थोडी देर लंड को चूत की मुलायम चारदीवारी पे सहलाने के बाद मैंने बीच में रख के हाथ लंड से हटाया और उसके हाथ को थाम लिया. अब वो थी मेरे नीचे, नीचे से मम्मों तक एकदम नंगी. ब्रा और कमीज मम्मों से ऊपर चढे़ हुए.और मेरा लंड चूत के दरवाजे पे दस्तक देता हुआ. मैंने जो़र लगाना शुरू कर दिया और स्वाति ने आँखें जो़रों से भींच दी. पहले जो़र में कुछ न हुआ. मैंने कहा – रिलेक्स, डार्लिंग इतना जो़र से ना भींचो. उसकी टांगें थोडी़ सी ढीली होते ही मैंने फिर जो़र लगाया. स्वाति के मुंह से एक जो़रों की आह निकली और लंड महाराज अब चूत के फाटक के अन्दर कोई एक सेंटी मीटर पहुँच गए थे. मैंने स्वाति के होंठों से होंठ लगाए और वो पागलों की तरह चुम्मे लेने लगी. मैंने लंड को थोडा सा पीछे किया, और हल्का सा जो़र लगा के थोडा और आगे धकेला. एक और सेंटी मीटर. इतनी टाईट चूत में मैंने आज तक लंड नहीं घुसाया था. चारों और से जैसे टाईट रब्बर बैंड मेरे लंड पे कस रहा था. मेरा लंड इन सब दबावों के बावजूद अन्दर घुसता गया और मैंने एक जो़रदार झटका दिया. स्वाति लगभग चिल्ला पडी. मैं डर गया के कहीं पडो़सी समझें कोई बलात्कार हो रहा है और पुलिस को बुला लें. मैंने अपने मुंह को उसके मुंह पे रख के उसकी बाकी की चीख दबा दी. लंड पूरा अन्दर तक घुस गया था. मेरे टट्टे उसके कूल्हों पे रखे थे. उसकी टांगों ने मुझे अपने आगोश में ले लिया और मैं धीरे धीरे अपना लंड आगे पीछे करने लगा. मैं पहले ही धीरे धीरे धकिया रहा था और वो अपनी टांगों से लपेट के मुझे और धीरे कर रही थी. मैं धक्के लगाते लगाते अपना हाथ उसकी गांड तक ले के आया और फिर उसकी गांड के छेद तक. अपनी बीच वाली अंगुली मैंने उसकी गांड के गरम गरम छेद पे रख दी और लगातार सहलाता रहा. उसके होठों को थोडी़ देर चूसने के बाद मैं रह रह के उसके चूचों को चूस लेता, कभी निप्पलों पे हलके से दांत गडा देता. ऐसे ही कुछ ५ मिनट हुए होंगे के मैंने लंड को बाहर निकाल लिया. निकलते हुए मेरे लैंड का सुपाडा करीब करीब चूत के मुंह के नजदीक वाले इलाके में फँस ही गया था. मैंने स्वाति को परे मुंह करके एक तरफ करवट पे लिटाया और पीछे से मम्मे पकड़ के लंड घुसाने की कोशिश की. बहुत कोशिश करके भी लंड इस रास्ते से घुस न पाया क्यूंकि स्वाति ठीक से टांगें न खोल पायी. थोडी देर लंड को उसकी गांड पे रगडा और लौट के बुद्धू घर को आये.

मैंने स्वाति को फिर उसकी कमर पे लिटाया और उसके मुंह पे हाथ रख के लंड को घुसाया. पिछली बार की तरह घुसाना मुश्किल था, लेकिन इस बार मैंने उतना सब्र से काम नहीं लिया और पहली बार में ही जो़रों के झटके से पूरा घुसा दिया. स्वाति ने मेरे हाथ पर दांत गडा़ दिए, लेकिन सिर्फ इतना जो़र से के हल्का दर्द हो, इतना जो़र से नहीं के खून निकल आये. मैं थोडी देर ऐसे ही झटके मारता रहा फिर चूत में लंड डाले डाले मैंने अपनी बाजूएं स्वाति की कमर के इर्द गिर्द लपेट ली और अपनी कमर की और लुढ़क गया. अब वो मेरे ऊपर थी और मैं अपनी कमर पे. फिर मैंने हलके हलके झटके देने शुरू कर दिए. मैंने स्वाति के कंधे पे जो़र देके कोशिश की के उसे बैठा दूं ताकि उसके मम्मे मेरे ऊपर आमों की तरह झूलने लगें और मैं उनसे तमीज़ से खेल पाऊँ. लेकिन स्वाति बार बार मेरी छाती से चिपके जा रही थी. मैंने सोचा, ये अच्छी बात है, चुदवा भी रही है और शर्मा भी रही है. मम्मों से न खेल पाने के चलते मैं वापिस लुढ़क के ऊपर आ गया और जो़रों से झटके लगाने लगा. स्खलन होने से कुछ पलों पहले मैंने अपनी कमर एकदम सीधी कर ली जैसे के पुश-अप कर की पोसिशन होती है जब बाजू एकदम सीधी होती हैं और दोनों हाथों से दोनों मम्मों को दबोच लिया. बहुत जो़र से मम्मे भींच कर माल निकालने वाला ही था के याद आया – उफ्फ्फ कंडम पहनना भूल गया. मैंने तुरंत लंड बाहर निकाला, सफे़द वीर्य एकदम जो़रों से पिचकारी की तरह मेरे लंड से निकला और चूत से एक लकीर बनाता हुआ स्वाति की ठुड्डी तक जा पहुंचा. मैंने जो़र की आह भरी. एक और पिचकारी निकली, इस बार नाभि और मम्मों के बीच तक पहुँची. फिर मैंने अपने हाथों से बचा खुचा माल निकाला तो उसके पूरे पेट पे एक झील सी बन गयी. वीर्य रिस कर उसके पेट से दोनों और जाने लगा. “लंड चुसोगी?” मैंने पूछा, लेकिन स्वाति कुछ न बोली, मुंह एक और करके साइड की दीवार की और देखने लगी. मैंने मन बना लिया के मुंह में तो दे ही देता हूँ, सो मैं अपना लंड लेके उसके होठों तक ले गया. उसने मुंह न खोला तो मैं अपना अब नर्म हो चूका लंड उसके होठों पे रखा और हलके हलके सहलाने लगा. आखिर स्वाति को तरस आ गया और उसने मुंह खोल के मेरे लंड को अपने मुंह में भर लिया. थोडी़ देर तक वो लंड चूसती रही. मेरी आँखें इतने आनंद से एकदम बंद थी. जब पूरा माल बाहर आ चूका था, और मैं और नहीं झेल पा रहा था, मैंने लंड उसके मुंह से निकाला. स्वाति अब मुस्करा रही थी. बिस्तर में मम्मों से नीचे एकदम नंगी, पेट पे एक वीर्य का समंदर, दोनों और रिसती वीर्य की नदीयाँ और चूत से ठुड्डी तक एक सीधी सफे़द लकीर, ऐसे लग रहा था के जैसे खुद भगवान् ने आ के बहुत सुन्दर पेंटिंग बनायी हो.